HFNNews
story9 Heartfulness story-9
Wednesday, 16 Aug 2023 00:00 am
HFNNews

HFNNews

हमारी जीत क्या सिर्फ हमारी प्रतिभा पर निर्भर करती है?

जीत

बहुत सी तीरंदाजी प्रतियोगिताएँ जीतने के बाद एक नौजवान तीरंदाज खुद को सबसे बड़ा धनुर्धर मानने लगा। वह जहाँ भी जाता लोगों को खुदसे मुकाबला करने की चुनौती देता और उन्हें हरा कर उनका मज़ाक उड़ाता। 

एक बार उसने एक प्रसिद्ध मास्टर को चुनौती देने का फैसला किया और सुबह-सुबह पहाड़ों के बीच स्थित उनके मठ जा पहुँचा। 

“मास्टर, मैं आपको तीरंदाजी मुकाबले के लिए चुनौती देता हूँ," नवयुवक बोला। मास्टर ने नवयुवक की चुनौती स्वीकार कर ली।

मुक़ाबला शुरू हुआ।

नवयुवक ने अपने पहले प्रयास में ही दूर रखे लक्ष्य के ठीक बीचों-बीच निशाना लगा दिया। और अगले निशाने में उसने लक्ष्य पर लगे पहले तीर को ही भेद डाला।
           
अपनी योग्यता पर घमंड करते हुए नवयुवक बोला, "कहिये मास्टर, क्या आप इससे बेहतर करके दिखा सकते हैं? यदि ‘हाँ ' तो कर के दिखाइए, यदि ‘नहीं ' तो हार मान लीजिये।"

मास्टर बोले, "पुत्र, मेरे पीछे आओ!”
      
मास्टर चलते-चलते एक खतरनाक खाई के पास पहुँच गए। नवयुवक यह सब देख कुछ घबराया और बोला, "मास्टर, यह आप मुझे कहाँ लेकर जा रहे हैं?"

मास्टर बोले, "घबराओ मत पुत्र, हम लगभग पहुँच ही गए हैं, बस अब हमें इस ज़र्ज़र पुल के बीचो-बीच जाना है।"

नवयुवक ने देखा कि दो पहाड़ियों को जोड़ने के लिए किसी ने लकड़ी के एक कामचलाऊ पुल का निर्माण किया था और मास्टर उसी पर जाने के लिए कह रहे थे।

मास्टर पुल के बीचों-बीच पहुँचे, कमान से तीर निकाला और दूर एक पेड़ के तने पर सटीक निशाना लगाया। निशाना लगाने के बाद मास्टर ने कहा, "आओ पुत्र, अब तुम भी उसी पेड़ पर निशाना लगा कर अपनी दक्षता सिद्ध करो।"

नवयुवक डरते-डरते आगे बढ़ा और बेहद कठिनाई के साथ पुल के बीचों-बीच पहुँचा और किसी तरह कमान से तीर निकाल कर निशाना लगाया पर निशाना लक्ष्य के आस-पास भी नहीं लगा।

नवयुवक निराश हो गया और अपनी हार स्वीकार कर ली।

तब मास्टर बोले, "पुत्र, तुमने धनुष बाण पर तो महारत हासिल कर ली, पर तुम्हारा उस मन पर अभी भी नियंत्रण नहीं है जो किसी भी परिस्थिति में लक्ष्य को भेदने के लिए आवश्यक है। 

पुत्र, इस बात को हमेशा ध्यान में रखो कि जब तक मनुष्य के अंदर सीखने की जिज्ञासा है, तब तक उसके ज्ञान में वृद्धि होती है...लेकिन जब उसके अंदर सर्वश्रेष्ठ होने का अहंकार आ जाता है, तभी से उसका पतन प्रारम्भ हो जाता है।"

नवयुवक मास्टर की बात समझ चुका था, उसे एहसास हो गया कि उसका धनुर्विद्या का ज्ञान बस अनुकूल परिस्थितियों में कारगर है और उसे अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है; उसने तत्काल ही अपने अहंकार के लिए मास्टर से क्षमा मांगी और सदा एक शिष्य की तरह सीखने और अपने ज्ञान पर घमंड ना करने की सौगंध ली।

दोस्तों, हम भी शारिरिक स्तर पर ताक़तवर हो सकते हैं, कई प्रतिभाओं मे भी निपुण हो सकते हैं, पर अगर हमारा ह्रदय हर परिस्थिती को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है, तो क्या हम सफल जीवन जी सकते हैं?

                          अहं का उपयोग किसी का दिल दुखाने के लिए नहीं किया जाना चाहिये। इसका उपयोग उंगली को अपनी तरफ मोड़ कर यह कहने के लिए होना चाहिए कि "ठीक है, मैं इसे पहले से भी ज़्यादा अच्छी तरह से कर सकता हूँ।"
दाजी