शरीर के विकास के लिए हम आसन, प्राणायाम और व्यायाम करते हैं और मन के विकास के लिए?
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- Saturday, 01 Jul, 2023
मन की शक्ति-2
स्वामी विवेकानंद के जीवन की एक और घटना जो पढ़कर शायद हम अहसास कर पाएँ कि हम अपने दिमाग की क्षमता को किस हद तक विकसित कर सकते है।
विवेकानंद जी भारत के पहले ऐसे योगी थे जो अमेरिका गए थे 1893 में। उन दिनों स्वामी विवेकानंद ने आद्यात्मिकता के जगत में एक क्रांति-सी ला दी। कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद अमेरिका से लौटते हुए एक जर्मन दार्शनिक के पास मेहमान थे। डिनर के बाद वे एक स्टडी रूम में आपस में बैठकर चर्चा करने लगे। वहीं मेज पर एक 700 पेज की बड़ी किताब रखी हुई थी और ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह दार्शनिक उस किताब का बहुत ही गंभीरता से अध्ययन कर रहे हैं। विवेकानंद जी ने उनसे कहा, "क्या आप मुझे यह किताब 1 घंटे के लिए दे सकते हैं। मैं देखना चाहता हूँ कि ऐसा इस किताब में क्या है।"
यह सुनकर वह आदमी हँसने लगा और कहा कि, "क्या आप इस किताब को 1 घंटे में पढ़ने वाले हैं। मैं तो इसे कई हफ्तों से पढ़ रहा हूँ लेकिन मैं इस किताब को समझ नहीं पा रहा हूँ क्योंकि यह बहुत ही जटिल है और वैसे भी यह किताब जर्मन भाषा में है और आपको तो यह भाषा आती भी नहीं है। इस 1 घंटे में आप क्या कर सकते हैं?"
स्वामी विवेकानंद ने कहा कि, "आप जरा किताब तो दीजिए। किताब को देख कर बताता हूँ कि मैं क्या कर सकता हूँ।" तो फिर वह किताब उन्हें दे दी गई। उन्होंने उस किताब को अपने दोनों हाथों के बीच में पकड़ा और फिर आँखें बंद करके बैठ गए और फिर 1 घंटे के बाद किताब को वापस करते हुए स्वामी विवेकानंद ने कहा कि, "इसमें कुछ भी खास नहीं है।"
उस आदमी को लगा कि विवेकानंद के घमंड की तो हद ही हो गई। उसने कहा कि "आपने किताब को खोला तक नहीं और आप उसके बारे में अपनी राय दे रहे हैं। आपको यह भाषा तक नहीं आती।" वह दार्शनिक थोड़ा-सा चिढ़ गया और बोला, "यह किस तरह की बकवास है।"
फिर विवेकानंद बोले कि, "आप किताब के बारे में कुछ भी पूछ लीजिए मैं आपको बताऊँगा।"
"ठीक है।" उन्होंने कहा, "पेज 633 में क्या लिखा है?" फिर विवेकानंद ने किताब में लिखा एक-एक शब्द दोहरा दिया है। मतलब आप बस पेज का नंबर बोलिए, उस पेज पर लिखी बातों को शब्द दर शब्द बता देंगे।
उस दार्शनिक के पैरों तले जैसे जमीन खिसक गई हो, खुद को संभालते हुए आश्चर्य से पूछा, "ऐसा कैसे हो सकता है। यह तो चमत्कार है। आपने किताब खोली तक नहीं, ऐसा कैसे हो गया?" स्वामी विवेकानंद मुस्कराये और कहा, "इसीलिए मुझे लोग विवेकानंद कहते हैं। विवेक यानी बोध।"
वैसे उनका नाम नरेंद्र था। उनके गुरु उनको विवेकानंद कहते थे क्योंकि उनकी बोध की क्षमता कुछ ऐसी थी कि जो उनके गुरु ने पहचान ली थी। तो कुछ इस तरीके से थी स्वामी विवेकानंद के दिमाग की क्षमता, उनके बोध की शक्ति, उनकी स्मरण की शक्ति।
यह तभी संभव है, जब हम अपने दिमाग की शक्ति को पहचान पाए, उस पर भरोसा कर पाए। हम यह ना सोचें कि स्वामी विवेकानंद के पास यह शक्ति उस ईश्वर ने दी थी बल्कि हम सब को ईश्वर ने शक्तिशाली दिमाग दिया है। बस हम उसे जानते नहीं हैं कि इसका इस्तेमाल कैसे करना है। जरूरत है तो इस क्षमता को विकसित करने की। हम भी ध्यान के द्वारा अपने दिमाग की शक्ति को विकसित कर सकते है। शरीर की मांसपेशियों को विकसित करने के लिए कड़ी मेहनत और अनुशासन की जरूरत होती है, उसी प्रकार मन की क्षमताओं को विकसित करने के लिए ध्यान के गहरे अभ्यास की जरूरत होती है। जिससे हम खुद को बदल सकते है, एक साधारण इंसान से एक असाधारण इंसान में।
"प्रभावकारी ध्यान वही है जो ध्यान करने वाले को अधिचेतना के अनन्त आकाश की ऊँचाइयों तक ले जाए और अवचेतना के गहनतम सागर में गोते लगाने देकर उसे समझदार व्यक्ति के रूप में उभारे। हमारी चेतना इसी तरह से विकसित होती है।"
दाजी