story-8
Heartfulness story 8
विनम्रता की जीत
पढ़ने से पहले धीरे से अपनी आँखें बंद करें... अपना ध्यान अपने हृदय पर लाएँ... अपने हृदय की पवित्रता और विनम्रता को महसूस करें... अब पढ़ना प्रारंभ करें...
सुबह मेघनाथ से लक्ष्मण का अंतिम युद्ध होने वाला था। वह मेघनाथ, जो अब तक अविजित था, जिसकी भुजाओं के बल पर रावण युद्ध कर रहा था। अप्रतीम योद्धा! जिसमें सभी दिव्यास्त्रों को उपयोग करने की शक्ति थी।
सुबह जब लक्ष्मण भगवान राम से आशीर्वाद लेने गए, उस समय भगवान राम पूजा कर रहे थे।
पूजा समाप्ति के पश्चात प्रभु श्री राम ने हनुमानजी से पूछा:- "अभी कितना समय है युद्ध होने में?"
हनुमानजी ने कहा:- "प्रभु, अभी कुछ समय है! यह तो प्रातःकाल है...।"
भगवान राम ने लक्ष्मण से कहा:- "यह पात्र लो और भिक्षा माँगकर लाओ, जो पहला व्यक्ति मिले उसी से कुछ अन्न माँग लेना...!"
सभी बड़े आश्चर्य में पड़ गए। आशीर्वाद की जगह भिक्षा? लेकिन लक्ष्मण को तो जाना ही था, क्योंकि यह उनके बड़े भाई की आज्ञा थी।
लक्ष्मण जब भिक्षा माँगने के लिए निकले, तो उन्हें सबसे पहले रावण का एक सैनिक मिल गया। आज्ञानुसार माँगना ही था। यदि भगवान की आज्ञा न होती, तो लक्ष्मण उस सैनिक को वहीं मार देते, परंतु वे उससे भिक्षा माँगते हैं।
सैनिक ने अपनी रसद से लक्ष्मण को कुछ अन्न दे दिया।
लक्ष्मण ने वह अन्न लाकर भगवान राम को अर्पित कर दिया।
तत्पश्चात भगवान राम ने उन्हें आशीर्वाद दिया, "विजयी भवः।"
भिक्षा का मर्म किसी की भी समझ नहीं आया, पर कोई पूछ भी नहीं सकता था...बस, यह प्रश्न सबके अंदर ही रह गया।
फिर भीषण युद्ध हुआ!
अंत में मेघनाथ ने त्रिलोक की अंतिम शक्तियों को लक्ष्मण पर चलाया। ब्रह्मास्त्र, पाशुपास्त्र , वैष्णवास्त्र.....इन अस्त्रों की कोई काट न थी।
लक्ष्मण ने सिर झुकाकर इन अस्त्रों को प्रणाम किया। सभी अस्त्र उनको आशीर्वाद देकर वापस चले गए।
उसके बाद राम का ध्यान करके लक्ष्मण ने मेघनाथ पर बाण चलाया। वह हँसने लगा। देखते ही देखते मेघनाद का सिर कटकर जमीन पर गिर गया और उसकी मृत्यु हो गई...
उसी दिन संध्याकाल में भगवान राम शिव की आराधना कर रहे थे। भगवान राम ने लक्ष्मण को सुबह भिक्षाटन हेतु क्यों भेजा था, यह प्रश्न तो अभी तक प्रश्न ही रह ही गया था, तो हनुमानजी ने कहा, "प्रभु, आप आज्ञा दें तो एक प्रश्न है?" भगवान राम की अनुमति मिलने पर हनुमान जी ने पूछा, "प्रभु वह भिक्षा का मर्म क्या है...?"
भगवान मुस्कराने लगे, बोले:- "मैं लक्ष्मण को जानता हूँ। वह अत्यंत क्रोधी स्वभाव का हैं। लेकिन युद्ध को क्रोध से नहीं, विवेक से जीता जाता है। जीवन के हर क्षेत्र में विजयी वही होता है, जो उस समय विशेष पर अपने विवेक को नहीं खोता है। मैं जानता था कि मेघनाथ ब्रह्मांड की चिंता नहीं करेगा। वह युद्ध जीतने के लिये हर तरह के दिव्यास्त्रों का प्रयोग करेगा।
इन अमोघ शक्तियों के सामने ताकत नहीं सिर्फ़ और सिर्फ़ विन्रमता ही काम कर सकती थी , इसलिए मैंने लक्ष्मण को सुबह झुकना बताया। एक वीर शक्तिशाली व्यक्ति जब भिक्षा माँगेगा, तो विन्रमता उसमें स्वयं प्रवाहित होगी। लक्ष्मण ने मेरे नाम से बाण छोड़ा था। यदि मेघनाथ उस बाण के सामने विन्रमता दिखाता तो मैं उसे भी क्षमा कर देता।"
केवल जब हम महानता की दीवार तोड़कर स्वयं को विनम्र एवं तुच्छ प्राणी के रूप में प्रस्तुत करते हैं और अपनी व्यवहार संबंधी जटिलताओं और अहंकार को वश में कर लेते हैं, तभी जीवन वास्तव में आनंददायक बनता है। अहंकार को बहला कर हम समर्पण की कला में श्रेष्ठता हासिल कर सकते हैं।
“यदि आप में विनम्रता और सरलता के गुण हैं , तो आप यह मान सकते हैं कि आपके पास वह सब कुछ है , जो आपको चाहिए।”
दाजी